सफर : अवसाद ( depression ) से मौत ( Suicide ) तक का।
साथियों , सर्वप्रथम आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया जो आपने हमारे पिछले लेख " रक्षाबन्धन कल , आज और कल " को प्रेम व स्नेह दिया ।
जैसा कि विदित है हम वर्तमान परिस्थितयो से जनित विषयो पर आपके लिये अपने लेख के माध्यम से कुछ न कुछ नवीन व प्रभावी कंटेंट लाते रहते है ।
इसी कड़ी में आज हम एक ऐसे ही विषय पर चर्चा करने का प्रयास करेंगे जो इस समय हमारे देश की इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया पर अत्यधिक चर्चा का विषय बना हुआ है ।
साथियो , आप सभी को याद होगा अभी हाल ही के दिनों में एक मशहूर , कामयाब व अत्यधिक होनहार अभिनेता का निधन हो गया जो तब से लेकर अब तक पूरे देश के लिए एक पहेली बना हुआ है कि आखिर निधन के पीछे की असल वजह क्या है।
साथियो , इस सब के बीच एक शब्द "अवसाद " भी बहुत अधिक चर्चित हुआ और वो इसलिए कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के हुए निधन के लिए अवसाद (depression) को भी एक वजह के रूप में देखा जा रहा था ,
हालांकि हम ऐसी किसी भी वजह ( अवसाद ) का समर्थन नही करते और इस विषय पर कुछ कहना उचित भी नही है क्योंकि यह अभी एक जांच का विषय है ।
आशा करते है कि इस घटना की निष्पक्ष व पारदर्शी जांच होगी व हमारे सबके चहेते कलाकार सुशांत सिंह राजपूत को जल्द न्याय मिलेगा ।
खैर आज हम जिस विषय पर चर्चा करेंगे वह है अवसाद ( depression ) कि आखिर ,
1) अवसाद क्या है !
2) इसके कारण व लक्षण क्या है !
3) अवसाद के विषय मे समाज का दृष्टिकोण ।
4) अवसाद का उपचार।
5) अवसाद का समय पर उपचार न होने की स्थिति में उसके परिणाम ।
1) अवसाद क्या है !
अवसाद ( depression ) शब्द से अभिप्राय एक ऐसी मानसिक अवस्था अथवा मनोरोग से है जिसमे व्यक्ति में प्रायः - प्रायः निम्न लक्षण दिखाई दे सकते है .
- हमेशा खालीपन महसूस करना -
इस परिस्थिति में व्यक्ति सबके बीच होकर भी हमेशा स्वयं को अकेला महसूस करता है वह दुनिया के मानकों में तो सब चीजों धन , वैभव , परिवार रिश्तेदार आदि में सम्पन्न होता है
किंतु इसके बावजूद कहि न कहि वह स्वयं को ठगा हुआ व असन्तुलित महसूस करता है व अपने जीवन मे हमेशा एक अजीब सी कमी को महसूस करता है
यह कमी अथवा खालीपन कभी - कभी तो किसी बहुत करीबी के छोड़ जाने से व्यक्ति में उत्पन्न हो जाती है तो कई बार ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति खुद इस बात से अनिभिज्ञ रहता है कि उसके जीवन मे इस खालीपन की वजह क्या है .
- सदैव उदासी व थकान का बने रहना -
इस परिस्थिति में व्यक्ति के चेहरे पर हमेशा एक अजीब सी उदासी छाई रहती है तथा उसे इस बात से फर्क पड़ना बन्द हो जाता है कि उसके जीवन मे क्या चल रहा है वह खुशी के पलों में भी वही प्रतिक्रिया देता है
जैसे कि दुख में। उसके संवेगों जैसे हँसना , रोना , प्रेम , क्रोध , करूणा , दया , ईर्ष्या आदि में असन्तुलन सा उत्पन्न हो जाता है एवं प्रत्येक परिस्थिति में वह दुख का अनुभव करता है व दुख में ही अपना आनंद ढूंढने की कोशिश करता है
वही दूसरी ओर तनिक सा काम कर लेने पर भी वह बहुत अधिक थका हुआ व ऊर्जा से रहित महसूस करता है .
- नकारात्मकता की ओर उन्मुख होना -
इस अवस्था मे व्यक्ति सदैव संसार की क्षणभंगुरता व निर्थकता जैसी बातें करता है
वह स्वयं के , परिवार के व सम्पूर्ण संसार के प्रति इतना नकारात्मक हो जाता है कि खुदखुशी जैसे कदम उठा लेता है।
- बिना किसी कारण के दुखी होना व बेवजह ही अकेले बैठकर रोते रहना।
- अपने हाथों ही अपने शरीर को नुकसान पहुचाने की कोशिश करना एवं इस समय वह इतना अधिक उत्तेजित हो जाता है कि चाकू , ब्लेड आदि से अपने शरीर को काटकर अपने दुख को कम अथवा खत्म करने की कोशिश करता है ।
- दोहरे चरित्र में जीने का प्रयास करना अर्थात व्यक्ति अंदर कितना ही दुखी अथवा कुंठित महसूस कर रहा हो लेकिन सबके सामने हमेशा हँसता - खेलता दिखलाई पड़ता है और यही सबसे बड़ी वजह है जिसके कारण अवसाद ( depression ) से ग्रस्त व्यक्तियों की पहचान ही नही हो पाती।
साथियो , ये कुछ ऐसे लक्षण है जिनके माध्यम से हम कुछ हद तक अवसाद ( depression ) से ग्रस्त व्यक्ति की पहचान कर सकते है किंतु इनके अतिरिक्त और कई लक्षण हो सकते है ।
आकड़ो की बात करे तो अमेरिका , भारत , चीन जैसे बड़े देशो में इस मनोरोग से ग्रस्त रोगियों की संख्या लगभग 26 से 28 करोड़ तक है ।
हर दिन कई लोग इससे ग्रसित होते है तो कई इससे ठीक भी होते है साथियो यह अन्य रोगों की तरह ही केवल एक मन का रोग है जिसका इलाज दवाइयों व कॉउंसलिंग की मदद से सम्भव है ।
समाज का दृष्टिकोण :-
साथियों , जैसा कि हमने जाना कि अवसाद ( depression ) केवल एक सामान्य मानसिक रोग अथवा अवस्था है जो जात - पात , अमीरी - गरीबी , सफलता - असफलता को देखे बिना किसी को भी हो सकता है
किन्तु समाज मे इस रोग को लेकर कई भ्रान्तियाँ उपस्थित है जैसे इस रोग से पीड़ित लोग दिमागी रूप से कमजोर होते है कई बार तो इस रोग से ग्रसित लोगो को समाज द्वारा पागल की संज्ञा दे दी जाती है ।
कई बार जब तबकि किसी व्यक्ति में इस रोग की पहचान नही हो पाती तथा वह समाज मे सामान्य से भिन्न व्यवहार प्रदर्शित करता है .
तो समाज मे ऐसे व्यक्तियों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगता है जिससे अवसाद ( depression ) से ग्रसित व्यक्ति अंदर ही अंदर कुंठित होने लगता है , वह अकेलेपन से जूझने लगता है , खुद को समाज से बहिष्कृत महसूस करने लगता है
इसके अतिरिक्त कई ऐसी भावनाएं उसमे जन्म लेने लगती है जो उसे आत्महत्या ( Suicide ) जैसे कदम तक उठाने पर मजबूर कर देती है ।
साथियो , दुख की बात तो यह है कि वह समाज जो इस रोग से ग्रसित लोगो को जिंदा होने पर पागल , कमजोर आदि कहकर उन्हें आत्महत्या ( Suicide ) के लिए विवश करता है.
वही समाज इन लोगो के आत्महत्या ( Suicide ) कर लेने के उपरांत भी इन्हें कमजोर , नाकारा , पागल , आदि शब्दो से श्रद्धाजंलि देने से परहेज नही करता।
किन्तु ऐसे लोग पर यह कड़ा प्रहार होगा कि तब यह समाज कहाँ जाता है जब अवसाद ( depression ) से गुजर रहे व्यक्ति पल - पल अकेलेपन की आग में जल रहे होते है
तथा समाज के हर व्यक्ति की तरफ एक उम्मीद भरी निगाह से देखते है कि किसी के पास तो उसकी बातें सुनने का वक़्त होगा कोई तो ऐसा होगा जिससे वो अपने सारे गम बांट सकेगा
अपनी हर एक बात बता सकेगा जो उसे परेशान करती है और हम या फिर हमारा समाज क्या करता है ??? उन्हें ज्ञान देने लगता है कि अकेले आये है अकेले ही जीना है है और अकेले ही मर जाना है
इसलिए अपनी समस्याओं से खुद लड़ो पर कभी उसकी पीड़ा जानने की कोशिश नही करते ।
जब उनके दुख को सुनने वाला कोई नही होता और वे खुले आसमान की तरफ देख उससे ही अपना दुख बांटने लगते है तो हम और हमारा समाज उनको देख कहता है कि वो देखो पागल आसमान से बातें कर रहा है ।
जब वो अकेले बैठ रोता रहता है तो हम और हमारा समाज कहता है क्या लड़कियों की तरह रोता रहता है मर्द बन मर्द ??? और कहि अवसाद ( depression ) से ग्रसित कोई महिला हो तो उसे कहते है लड़कियां तो होती ही कमजोर है।
लेकिन तरस आता है मुझे ऐसे समाज की सोच पर क्योंकि अवसाद ( depression ) से ग्रसित लोगो के लिये पागल , कमजोर , नाकारा जैसे शब्दो का प्रयोग करना जितना आसान है उतना ही कठिन उस रोग से गुजरना है ।
मेरे दृष्टिकोण में कमजोर आत्महत्या (Suicide) करने वाला नही होता बल्कि कमजोर हम होते है जो ग्रसित लोगो की पीड़ा को समझ नही पाते उनकी मदद नही कर पाते ताकि वो इस रोग से बाहर आ सके और अपनी ज़िंदगी को जी सके ।
साथियो , आज वर्तमान में जब हमारे देश सहित सम्पूर्ण विश्व कोरोना जैसी महामारी से बड़े पैमाने पर ग्रसित हो रहा है
तो इस परिस्थिति में लोगो का अवसाद ( depression ) से ग्रसित होना भी स्वाभाविक है , क्योंकि वर्तमान में व्यक्ति अकेला है , सारे काम बंद है , पूरी जीवन शैली अस्त - व्यस्त हो चुकी है
ऐसे में भविष्य की चिंता भी व्यक्ति के अवसाद का कारण बन सकती है । अतः परिस्थितियों को देखते हुए आज आवश्यकता है कि हम व संम्पूर्ण समाज इस अवसाद ( depression ) को सिर्फ एक रोग की भांति ही देखे जिससे इसका उपचार समय पर सम्भव हो सके और किसी की जान बचाई जा सके ।
अवसाद ( depression ) का उपचार :-
अवसाद के उपचार के बारे में जानने से पूर्व हमे यह जानना आवश्यक है कि अवसाद जन्म कैसे लेता है ? दरहसल हमारे मस्तिष्क में कई ऐसे हार्मोन्स होते है ,जो हमारे संवेगों ( Emotions ) को संतुलित रखते है ।
इन हार्मोन्स की कमी अथवा जरूरत से ज्यादा अधिकता व्यक्ति के संवेगों ( Emotions) को अस्थायी रूप से असन्तुलित कर देती है
तथा व्यक्ति अवसाद ( depression ) की ओर उन्मुख हो जाता है तथा उपचार के लिए मनोचिकित्सक दवाइयों के माध्यम से व्यक्ति के हार्मोन्स को तथा काउंसलर , कॉउंसलिंग के माध्यम से व्यक्ति के संवेगों को संतुलित ( Balance ) करने का कार्य करते है ।
जिससे ग्रसित व्यक्ति को अवसाद से मुक्ति दिलायी जा सके । इस प्रक्रिया में कुछ समय तक ही दवाइयों का सेवन करना होता है किन्तु कुछ जटिल परिस्थितियों लम्बे समय तक दवाओं का सेवन करने की सलाह दी जाती है
इसमें अच्छी बात यह है कि इन दवाओं की न तो शरीर को आदत पड़ती है और न हि शरीर पर इनका कोई दुष्प्रभाव पड़ता है ।
यदि कोई थोड़ा बहुत दुष्प्रभाव पड़ता भी है तो उसे अन्य दवाओं की सहायता से समाप्त कर ग्रसित व्यक्ति को हमेशा - हमेशा के लिए अवसाद से मुक्त किया जा सकता है , बशर्ते समय पर व्यक्ति में इस रोग की पहचान हो जाये जिससे सही समय पर उपचार सम्भव हो सके ।
इसके अतिरिक्त हम भी अवसाद से ग्रसित व्यक्ति को भावनात्मक स्तर पर सहयोग कर उसे अवसाद से मुक्त होने में संबल ( confidence ) प्रदान कर सकते है।
अवसाद का चहुँमुखी परिणाम :-
साथियों, हम सब लोगो ने कभी न कभी सुना होगा कि हमारे मन का सीधा सम्बन्ध हमारे तन से होता है अर्थात हमारा शरीर हमारी सोच के अनुसार कार्य करता है हम जैसा सोचते है वैसा हम बन जाते है।
ऐसे में अवसाद से गुजरने वाले व्यक्ति जो मानसिक स्तर पर इतनी अधिक समस्याओ से जूझ रहा होता है तो उसके शरीर पर अवसाद का प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है
अतः कहा जा सकता है कि अवसाद ( depression ) व्यक्ति को मानसिक के साथ -साथ शारीरिक रूप से भी खोखला करता है
और जब अवसाद अपनी चरम सीमा को पार कर लेता है अर्थात व्यक्ति पूर्णतः यह स्वीकार कर लेता है कि अब वह कभी इससे बाहर नही आ पाएगा
या फिर वह इस दुनिया को स्वयं के लिए निरर्थक मान लेता है तो आत्महत्या जैसे विचार उसके मन मे बार - बार आने लगते है ।
ध्यान देने वाली बात यह है कि कई प्रकरणों में मृत लोग आत्महत्या के पूर्व कई दफा अपने परिवार वालो व मित्रो के सामने आत्महत्या जैसे विचार व्यक्त कर चुके थे
लेकिन परिवार व मित्रो ने उसे केवल एक मजाक समझ कर टाल दिया। अंततः उन लोगो ने आत्महत्या ( Suicide ) जैसे कदम उठाकर अपना जीवन समाप्त कर लिया।
अतः हमारे समक्ष कोई भी चाहे वो बच्चा हो या बड़ा आत्महत्या जैसे विचार प्रकट करता है तो उनके इन विचारो को गम्भीरता से ले तथा उनसे जानने का प्रयास करे कि वे किसी बात को लेकर परेशान तो नही है ?
साथियो यह मनोरोग कोई बहुत गम्भीर समस्या नही है जिसका समाधान सम्भव न हो बस आवश्यकता है तो उन लोगो को पहचानने की जो अवसाद से ग्रसित है या फिर अवसाद ( depression ) की ओर उन्मुख है क्योंकि इस मनोरोग से ग्रसित कोई भी हो सकता है आपके भाई-बहन , माता- पिता , पुत्र -पुत्री आदि कोई भी।
आधुनिकता के इस दौर में जहाँ व्यक्ति की जीवन- शैली इतनी अस्त - व्यस्त है , आवश्यकता है कि हम एक - दूसरे से बात करे ।
अपने सम्बन्धो में प्रगाढ़ता, आपसी सद्भावना , आपसी सहयोग , दया , करुणा आदि संवेगों की पुनः स्थापना करे एवं प्रयास करे कि हम अपने जीवन मे एक अच्छा इंसान बने ।
अंततः कुछ पंक्तियों के साथ आपको छोड़े जाता हूं ,
सोचा तो उसने भी होगा , अपने माँ- बाप के बारे में ।
मौत (Suicide)उसे आसान लगी थी , जीवन के इस अंधियारे से।
मौत (Suicide)उसे आसान लगी थी , जीवन के इस अंधियारे से।
कल तक जब जिंदा था वो ,
बेनाम सा था गलियारों में ।
आज जबकि वो झूल गया है ,
तस्वीर छपी है अखबारों में।
कोई कहता कमजोर उसे था,
कोई गिनता नाकारों में ।
कोई गिनता नाकारों में ।
मेरी नजर में अद्भुत था वो ,
जो जा बसां है सितारों में।
धन्यवाद , आशा है आपको यह लेख पसन्द आया होगा ,
अपनी राय कमेंट में लिखकर बताये व अधिक से अधिक शेयर करे ताकि यह समस्या आसान शब्दो में सामान्य जनमानस तक पहुच सके और सब इस मनोरोग को जाने व मानसिक रूप से स्वस्थ रहे ।
लेखक - धीरज गार्गे
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