साथियो , हमारा भारत देश त्योहारों का देश है । यहां आये दिन कोई न कोई त्यौहार अवश्य मनाया जाता है ।
जिसका कारण है यहां की विविधता जो इस देश को समस्त विश्व के समक्ष विभिन्न रंगों के फूलों से निर्मित गुलदस्ते के समान प्रस्तुत करता है।
यहां विभिन्न त्योंहार जैसे रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) , दिवाली , होली , ईद , क्रिसमस , लोहड़ी इत्यादि त्योहार मनाये जाते है ।
जिनमे से रक्षाबन्धन एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसके बारे में इस लेख के माध्यम से आज हम कुछ बातें जानने का प्रयत्न करेंगे ।
रक्षाबन्धन(RAKHSA BANDHAN)
रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) नाम सुनते ही हमारे मन मस्तिष्क में बहुत सी बातें पुनः स्मरण होने लगती है व मन हर्षोउल्लास से प्रफुल्लित होने लगता है ।
सामान्यतः रक्षाबन्धन, दो शब्दों से मिलकर बना है ' रक्षा + बन्धन " रक्षा अर्थात सुरक्षा , बन्धन अर्थात बाध्य होना ।
सामूहिक रूप से देखा जाये तो रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) का अर्थ है ," सुरक्षा के लिए बाध्य होना"।
यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को बनाया जाता है जिसके कारण इसे हम श्रावणी के नाम से भी जानते है ।
यह एक ऐसा त्योहार है जो सम्पूर्ण भारतीय समाज न केवल हिन्दू , बल्कि मुस्लिम , सिख , ईसाई जैन इत्यादि धर्म के लोगो द्वारा बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है
तथा यही वह त्योहार है जो समस्त भारतीय समाज के धार्मिक , सांस्कृतिक , सामाजिक व राजनैतिक सम्बन्धो को एक धागे में पिरोये रखने का कार्य करता है ।
जैसे ही सावन का महीना आता है , हमारा मन रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) के आने की आहट को महसूस करने लगता है कि फिर वही मिठाईयाँ , सावन के झूले , परिवार की मस्ती और भाई - बहन की अठखेलियां होंगी।
तो क्या रक्षाबन्धन का अर्थ केवल यहीं तक सीमित है ??????
जबकि हमने अभी - अभी जाना कि रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) का अर्थ है किसी की रक्षा के लिए बाध्य होना है। तो फिर हम इसे कैसे मिठाइयों , झूलो , भाई- बहन की अठखेलियों तक सीमित कर सकते है।
तो चलिये आज हम जानने का प्रयत्न करें कि रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) का स्वरूप इतिहास में क्या था ? वर्तमान में क्या है? , और भविष्य में क्या हो सकता है?
ऐतिहासिक महत्व व स्वरूप -
इस त्योहार का इतिहास अत्यंत प्राचीन महाभारत काल से माना जाता है क्योंकि उस समय की एक घटना अत्यंत प्रचलित है जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय भी रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) मनाया जाता था
लेकिन उसका स्वरूप कुछ इस प्रकार था कि , वह दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा का ही था जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था , वध करते समय अपने सुदर्शन चक्र से स्वयं कृष्ण की उंगली भी चोटिल हो गयी थी
जिससे रक्त का प्रवाह शुरू हो गया था जिसे रोकने हेतु द्रोपदी ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर उसे कृष्ण की उंगली पर बांध दिया था ।
माना जाता है कृष्ण ने उस समय द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर उसकी रक्षा का वचन लिया।
तथा अपने इस वचन की पूर्ति कृष्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के समय उसकी साड़ी की लंबाई में वृद्धि कर की थी । इस प्रकार कृष्ण ने द्रोपदी की रक्षा की ।
ऐसी ही मध्यकाल की एक घटना है -
जो उस समय रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) के स्वरूप से परिचित कराती है ।
वह घटना उस समय की है जब मेवाड़ राज्य अपने राजा की मृत्यु उपरांत राज्य के अंदर ही आपसी कलह जैसी विषम परिस्थितियों से गुज़र रहा होता है
तथा राज्य पर बाहरी आक्रमणों का खतरा मंडरा रहा होता है जब तबकि राजकुमार भी अपनी बाल्यावस्था में थे और राज्य की बागडोर सम्भालने में असमर्थ थे ।
ऐसी विषम परिस्थतियों में मेवाड़ पर गुजरात शासक बहादुरशाह के आक्रमण का खतरा मंडराने लगा ।
एवं इस आक्रमण से राज्य की सुरक्षा हेतु मेवाड़ रानी कर्णावती ने उस समय दिल्ली के शासक हुमायूँ को एक पत्र के साथ राखी भेजी और हुमायूँ को भाई बनाकर उनसे आग्रह किया कि वे बहादुरशाह से मेवाड़ की रक्षा करे।
जिसके जवाब में हुमायूँ ने कर्णावती को सहज अपनी बहन स्वीकार किया व अपनी बहन एवं उसके राज्य मेवाड़ की रक्षा हेतु तुरन्त अपनी सेना भेज दी।
इस प्रकार हुमायूँ ने बहन व उसके राज्य की रक्षा का वचन निभाया। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि -
रक्षासूत्र जो कि सामान्यतःसूत अथवा रेशम का धागा होता है वह जाति , धर्म , ऊँच - नींच से परे होता है व अपना महत्व सदैव बनाये रखता है।
एक अन्य घटना पर ध्यान
जब सिकन्दर की पत्नी ने हिन्दू राजा पुरूवास को राखी बांध उससे अपनी व अपने पति की रक्षा का वचन लिया था
जिसके फलस्वरूप पुरूवास ने युद्ध मे सिकन्दर को जीवनदान दिया था।
स्पष्ट है कि रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) का इतिहास अत्यंत प्राचीन व परिष्कृत है जिसे चंद शब्दो मे सीमित कर पाना सम्भव नही है।
रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) का वर्तमान स्वरूप
रक्षाबन्धन का वर्तमान स्वरूप प्राचीन काल मे मनाये जाने वाले रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) से पूर्णतः भिन्नता प्रदर्शित करता है ।
जैसे प्राचीन समय मे राखी सामान्यतः सूत अथवा रेशम के धागे की होती थी किन्तु आज राखियो का रूप आर्टिफिशियल हो गया है।
यहां तक कि बाजार में सोने - चांदी की राखियां तक उपलब्ध होती है तथा लोग अपनी आवश्यकतानुसार राखियां खरीदते है।
खैर राखी का महंगा या सस्ता होना उसके महत्व को न तो कभी कम कर पाया था ओर न ही कभी कर पाएगा क्योंकि भाई - बहन के प्रेम को सोने - चांदी से तौलना असम्भव है ।
यह त्यौहार खुशियों , आस्थाओ व एकजुटता से फलीभूत है । बहने अपने भाइयों को राखी बांधने हेतु अपने - अपने मायके जाती है पूरा परिवार एकत्रित होता है ।
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शुभमुहूर्त में बहने अपने भाइयों को उनकी दाहिनी कलाई पर राखी का रक्षासूत्र बांधती है व उनके अच्छे स्वास्थ्य व बेहतर भविष्य की कामना करती है जिसके बदले बहने अपने भाइयों से अपनी रक्षा का वचन मांगती है ।
किन्तु यहां एक बात है जो व्यंगात्मक अवश्य है किंतु उसे झुठलाया नही जा सकता कि बहने राखी बांधते समय अपने भाइयों के लिए कामना करें न करे
पर उनसे अपनी रक्षा करने के वचन के रूप में अच्छे - अच्छे उपहार की कामना अवश्य करती है । और "भाई तूने उपहार गर ना दिया तो तेरी नाक में दम होना तो तय है "।
खैर ये भाई - बहन के निःस्वार्थ प्रेम , झगड़े और अठखेलियों का विषय है । इस पर जितना कहा जाए कम है क्योंकि सब लोग इस अनोखे रिश्ते से भली - भांति परिचित होंगे कि
बहन के लिये अपना भाई दूसरा पिता तो भाई के लिए अपनी बहन अपनी दूसरी माता का दर्जा प्राप्त होती है तो दोनों अपने रिश्तों को न केवल रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) के दिन बल्कि सम्पूर्ण जीवनपर्यन्त भली तरह निभाते है ।
रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) से जुडी बचपन की यादे
रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) एक दिन होता है जब भाई - बहन एक जगह एकत्रित होकर अपने बचपन को याद कर उसे नवीनता प्रदान करते है
उन गलियों को जिनमे खेल उनका बचपन बीता , वो झगड़े जिनके चलते उनकी किशोरावस्था गुजरी ओर वो दिन जब बहन ने अपना घर छोड़ा ।
समस्त यादों के पिटारे इस दिन खुल जाते है । और इन सब के बीच हम एक चीज तो भूल ही गये .... वो घर के पास के पेड़ पर बंधा हुआ " सावन का झूला " ।
जब राखी बांधने का कार्यक्रम खत्म होता है उसके बाद पूरा परिवार उस झूले पर झूलने का आनंद लेता है , यह आनंद अमूल्य होता है।
जो किसी पार्क में जाकर झूलने से नही मिलता क्योंकि इस झूले में परिवार का साथ व उनकी भावनाये निहित होती है
फिर थककर सब बैठ जाते और अपनी यादों को पिटारे को पुनः खोल अपने इस महत्वपूर्ण दिन को और महत्वपूर्ण बनाने का कार्य करते है
इस तरह रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) का पूरा दिन आनन्द प्रदान करने वाला होता है ।
रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) अन्य रूपों में
इस दिन केवल बहने अपने भाइयों को ही नही अपितु माताएं अपने पुत्र को रक्षासूत्र के रूप में राखी बांधती है तथा गुरु - शिष्य भी आपस मे एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधते है ।
जिसमे शिष्य अपने गुरु को रक्षासूत्र बांधकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करता है तथा गुरु अपने शिष्य को रक्षासूत्र बांधकर उसके द्वारा दिये ज्ञान का समाज कल्याण में उपयोग करने का वचन लेता है।
इसी प्रकार इस त्योहार का एक अन्य रूप हमे अपने आसपास होने वाले पूजा -पाठ के कार्यक्रमो में भी दिखाई देता है जहाँ पुरोहित अपने यजमान को उसकी दाहिनी कलाई पर रक्षासूत्र बांधता है ।
इस त्योहार को न केवल घरो में बल्कि शासकीय कार्यालयों में भी मनाते हुए देखा जा सकता है जहाँ हमारे राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री कार्यालय में छोटे - छोटे बच्चे जाकर माननीय राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री जी को राखी बांधते है ।
सेना के जवानों को बॉर्डर पर बहने रक्षासूत्र बांधकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती है ।
इस प्रकार कहा जा सकता कि रक्षाबन्धन (RAKHSA BANDHAN) एक त्योहार है जिसकी परिष्कृतता का अनुमान लगाना समुद्र की गहराई नापने के समान है ।
यह त्योहार समाज मे भिन्न- भिन्न रूपो में दिखाई देता है तथा न केवल भाई-बहन को बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज को प्रेम व आपसी भाईचारे रूपी धागे से बांधे रखने का कार्य करता है।
भविष्य में रक्षाबन्धन की सम्भावनायें -
साथियों , हमारा भविष्य जो कि पूर्णरूपेण हमारे वर्तमान पर निर्भर होता है तो यदि हमे न केवल रक्षाबन्धन अपितु समस्त त्योहारों के भविष्य के रुप को समझना है तो पहले हमें उनको मनाये जाने के वर्तमान रुप को समझना होगा
अब जबकि लेख अपने अंतिम चरणों मे है , मैं आपसे इतनी अपेक्षा अवश्य कर सकता हूँ कि आप रक्षाबन्धन को मनाने के तरीकों व उनसे प्राप्त आनन्द से भली भांति परिचित हो गए होंगे ।
अब यदि बात इस त्योहार की भविष्य में सम्भावनाओ की करे तो वर्तमान दौर जो कि महामारियों Corona virus , सीमा - विवादों आदि जैसे संकटों से ग्रस्त है
जिनमे आये दिन ऐसी घटनाये सुनने व देखने को मिलती है जो मन - मस्तिष्क को झकझोर कर रख देती है कि कैसे कोई व्यक्ति अपने करीबी को ही उसके अंतिम समय मे अग्नि देने तक से कतरा रहा है क्योंकि मृत व्यक्ति किसी विषाणु का शिकार था।
ऐसी कई घटनायें है जिनका जिक्र कर पाना मुश्किल है किंतु तब जबकि व्यक्ति इतना डरा व सहमा हुआ है व अपने स्वास्थ्य के प्रति इतना चिंतित है तो अवश्य ही वह एक जगह अधिक मात्रा में एकत्रित होकर त्योहार व अन्य समारोह मनाने से बचता नजर आएगा
किंतु व्यक्ति अपनी संस्कृति व सभ्यता से भी अलग नही रह सकता क्योंकि संस्कृति ही है जो मानव मे संस्कारो को जीवित रखने का कार्य करती है तो इन परिस्थितियों में त्योहारों को मनाने का तरीका पूर्णतः आधुनिक होगा
जिसमे परिवार डिजिटल प्लेटफॉर्म का अधिक से अधिक प्रयोग करते दिखेंगे जिनके अंतर्गत इंटरनेट के माध्यम से शुभकामनायें देना , वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से परिवार का एकत्रित होने शामिल है ।
भविष्य में व्यक्ति आधुनिक तकनीकी के प्रयोग से त्योहारों को उसी हर्षोल्लास के साथ मनायेगा व वर्तमान में चल रही समस्याओ महामारियों आदि से स्वयं को भविष्य में भी सुरक्षित रख पायेगा।
रक्षाबंधन पर आज का सन्देश
साथियों , अभी हमने वर्तमान और भविष्य में रक्षाबन्धन के स्वरूप व महत्व को समझने का प्रयास किया।
मैं आशा करता हूँ कि इस लेख के माध्यम से आपको थोड़ा बहुत ही सही किन्तु लाभ अवश्य हुआ होगा किन्तु यहाँ हमने इस त्योहार के केवल एक ही पक्ष पर बात की है ।
दूसरा पक्ष जो कि इस त्योहार को मनाये जाने के पश्यात उसके परिणामो की व्याख्या करता है , न जाने क्यों कोई उस पर बात ही नही करता ?
क्यों हम चर्चा नही करना चाहते कि जिस त्योहार का इतिहास इतना प्राचीन व महत्व इतना प्रबल है उसे इतनी धूमधाम से मनाने के उपरांत भी हम उसकी गूढ़ता व मूल्यों को अपनी जीवनशैली में नही अपना पा रहे और..
यदि आप मेरी इस बात से सहमत नही है , तो क्यों नारी जाति से उनका वजूद व बच्चो से उनका बचपन छीना जा रहा है ? क्यों महिलाओ , बच्चो व बुजुर्गो के साथ अपराध इतना बढ़ रहा है ?
मानता हूँ वास्तविकता को स्वीकारना कठिन अवश्य है किंतु वास्तविकता यही है , दूसरी तरफ हम इस बात को भी नही नकार सकते कि कही न कही इन अपराधों का जन्म भी हमसे ही हुआ है और इनका अंत भी हम ही कर सकते है ।
आवश्यकता है तो केवल इस बात की , कि हम अपने घरों में पुनः उन संस्कारो व मूल्यों की स्थापना करने का प्रयास करे जो हमे व हमारी भावी पीढ़ी को माता - बहनो , बच्चो , बुजुर्गो , जीवो व सम्पूर्ण प्रकृति के प्रति दया रखने व उनकी रक्षा करने की प्रेरणा दे ।
तभी हम समाज से इन आपराधिक प्रवत्तियों को कम अथवा समाप्त कर पायेंगे और पुनः एक ऐसे वातावरण का निर्माण कर पायेंगे जिसमे नारी , बच्चे , बुजुर्ग इत्यादि लोग अपनी सुरक्षा के प्रति असहज महसूस न करे और सही अर्थों में तभी रक्षाबन्धन व अन्य त्योहारों को मनाना सफल होगा।
धन्यवाद!
लेखक-धीरज गार्गे
Very good dhiraj bhot mst article h bro to be continue. ..
ReplyDeleteUltimate dhiraj bhaiya
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